56- बोझ
नेताओं से
लदी,
इक्कीसवीं
सदी!
******
57- दाँती
दिन-रात
झगड़ा,
सास-बहू का
जहाँ चलता है,
कीड़ा
अनाज में
उसी घर में लगता है !
******
58- गुलाल
राधा-कृष्ण के साथ
लक्ष्मी और विष्णु भी
यदि फागुनी पिचकारी के
साथ होते,
होली और दिवाली जैसे
त्यौहार कभी इतने
दूर-दूर नहीं होते !
******
59- बदलाव
चकोर,
जाने क्यों
पागल हो गया है,
चाँद पर उसे आज
आदमी,
दिख गया है !
******
60- उदारता
मग्गे से,
अधिक उदार
कप-बसी को?
माना जायगा,
आने वाला
आखिरी घूँट तक भी
चाय पी जायगा !
-रमेशकुमार भद्रावले
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नेताओं से
लदी,
इक्कीसवीं
सदी!
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57- दाँती
दिन-रात
झगड़ा,
सास-बहू का
जहाँ चलता है,
कीड़ा
अनाज में
उसी घर में लगता है !
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58- गुलाल
राधा-कृष्ण के साथ
लक्ष्मी और विष्णु भी
यदि फागुनी पिचकारी के
साथ होते,
होली और दिवाली जैसे
त्यौहार कभी इतने
दूर-दूर नहीं होते !
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59- बदलाव
चकोर,
जाने क्यों
पागल हो गया है,
चाँद पर उसे आज
आदमी,
दिख गया है !
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60- उदारता
मग्गे से,
अधिक उदार
कप-बसी को?
माना जायगा,
आने वाला
आखिरी घूँट तक भी
चाय पी जायगा !
-रमेशकुमार भद्रावले
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